भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कहानी। Narsimha avatar story in hindi | Vishnu fourth avatar story in hindi.

नरसिंह अवतार की कहानी। भगवान विष्णु ने नरसिंग अवतार क्यों लिया? Story of Narsimha avatar in hindi.


       सतयुग में हिरण्याक्ष तथा हिरण्यकश्यपु नाम के दो राक्षसों का जन्म हुआ। भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण कर। हिरण्याक्ष को मार दिया। लेकिन इसके कुछ समय बाद ही हिरण्याक्ष के भाई हिरण्यकश्यपु ने उसकी मृत्यु का बदला लेने के लिए अमर होने का सोचा। 
         इसके बाद सहस्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया की न कोई उसे घर में मार सके न बाहर, न अस्त्र से और न शस्त्र से, न दिन में मरे न रात में, न मनुष्य से मरे न पशु से, न आकाश में न पृथ्वी में। यह वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: संपूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता निरुपाय हो गए थे। वे असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे।
          हरिण्यकश्यपु की पत्नी कयाधु से उसे प्रह्लाद नाम का एक पुत्र हुआ। प्रह्लाद के अंदर राक्षसों वाले गुण नहीं थे। वह बहुत संस्कारी था और भगवान नारायण का भक्त भी था। प्रह्लाद की आदतें देख हरिण्यकश्यपु ने उसमें बदलाव लाने की कोशिश की लेकिन भक्त प्रह्लाद में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। 



           इसके बाद हरिण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को मारने के लिए योजना बनानी शुरू कर दी। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वो हर बार बच जाता। एक दिन हरिण्यकश्यपु ने बालक प्रह्लाद से कहा कि तुम्हारे भगवान कहां हैं? तो प्रह्लाद ने कहा कि वह तो अन्तर्यामी है और सर्वत्र व्याप्त है। प्रहलाद की बात को सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध के मारे थर-थर कांपने लगा। उसने प्रहलाद से कहा- 'रे मंदबुद्धि! यदि तेरा भगवान हर जगह है तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?' यह कहकर क्रोध से तमतमाया हुआ वह स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा। उसने बड़े जोर से उस खंभे को एक घूंसा मारा। 



         जैसे ही उसने खंबे को तोड़ा उसी क्षण खंबे के भीतर से भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह अवतार का अवतरण हुआ। नरसिंह रूप भगवान विष्णु का रौद्र अवतार था। नरसिंह नाम के ही अनुसार इस अवतार में भगवान का रूप आधा नर यानी मनुष्य का और आधा शरीर सिंह यानी शेर का था। जिस चतुराई से हिरण्यकश्यपु ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था, उसी को ध्यान मै रखते हुए भगवान विष्णु ने ये अवतार लिया था। इसके बाद उन्होंने हिरण्यकश्यपु को अपनी गोद में उठा लिया और सिंहासन ने नजदीक चबूतरे पर बैठकर वे बोले। "दृष्ट हिरण्यकश्यपु तेरी मृत्यु मेरे ही हाथो होनी है", "तेरे वरदान के अनुसार नाहीं मै नर हूं नाहीं जानवर, नाही अभी दिन का समय है और नाही रात का, नाही हम घर के भीतर है और नहीं घर के बाहर और नाही तू जमीन पर है और नहीं आकाश मै, बल्कि मेरे पैरो पर लेटा हुआ है और मै तुझे किसी अस्त्र शस्त्र से नहीं बल्कि अपने नाखूनों से मारूंगा"। इतना कहते है भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यपु की छाती को अपने नाखूनों से चीर उसे मार दिया।



           लेकिन इसके बाद भी भागवान नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ उन्होंने सभी राक्षसों का अंत करना शुरू कर दिया। सभी देवताओं ने उन्हें शांत करने की कोशिश की लेकिन उनके क्रोध के आगे कोई रुक नहीं पाया। इसके बाद ब्रह्मदेव के सुझाव पर देवी लक्ष्मी ने भक्त प्रहलाद को भगवान नरसिंह के आगे खड़ा किया, प्रहलाद को देख उनका क्रोध एकदम से शांत हो गया। इसके पश्यात सभी देवी देवताओं ने नरसिंह अवतार की पूजा भी की और रंगों के साथ खेलकर अच्छाई पर बुराई की जीत का जश्न मनाया। इसी दिन से रंगपंचमी का त्योहार भी मनाया जाने लगा।

भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कहानी। Narsimha avatar story in hindi | Vishnu fourth avatar story in hindi. भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कहानी। Narsimha avatar story in hindi | Vishnu fourth avatar story in hindi. Reviewed by Mohit patil on सितंबर 16, 2020 Rating: 5

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