पांडवों की स्वर्ग यात्रा | Story of Pandavas Journey to Heaven in Hindi
पांडवों की स्वर्ग यात्रा व पांडव और द्रौपदी की मृत्यु की कहानी
दोस्तों महाभारत एक प्रसिद्ध हिंदू ग्रंथ है। महाभारत मूलतः पांडव और कौरवो की जीवन गाथा का वर्णन करती है। आज के इस लेख मैं हम आपके लिए महाभारत युद्ध से पांडवों की स्वर्ग यात्रा की कथा लेकर आए हैं। इसमे हम पांडवो के साथ द्रौपदी की मृत्यु कैसे हुई इस बारे मैं भी जानने वाले हैं। तो चलिए शुरू करते हैं।
पांडवों की स्वर्ग यात्रा - Story of Pandavas Journey to Heaven in Hindi
कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद जब कृष्ण और बलराम अपना देह त्याग देते हैं तब युधिष्ठिर तय करते हैं कि सभी पांडवों का पृथ्वीलोक छोड़ने का समय आ गया है । युधिष्ठिर ने वेश्या पुत्र युयुत्सु को बुलाकर संपूर्ण राज्य की देखभाल का भार सौंप दिया । राजा परीक्षित का अभिषेक कर के पांडवों ने उसे हस्तिनापुर का राजा बना दिया।
पांडव और द्रौपदी सब के सब उपवास का व्रत लेकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके चल दिए
आगे-आगे युधिष्ठिर चलते थे उनके पीछे भीम थे भीम के पीछे अर्जुन थे उनकी भी पीछे क्रमशः नकुल और सहदेव चल रहे थे इन सब के पीछे
द्रोपदी चल रही थी वन को प्रस्तुत हुए पांडवों के पीछे एक कुत्ता भी चला जा रहा था ।
अर्जुन ने अपने दिव्य गांडीव धनुष तथा दोनों अक्षय तूनीरो का परित्याग नहीं किया था ।
वहां अग्निदेव अर्जुन से कहते हैं श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र भी अब चला गया है, गांडीव धनुष भी वरुण से मांग कर लाया गया था अब इन्हें वरुण देव को वापस कर देना चाहिए यह सुनकर अर्जुन ने वह धनुष और अक्षय तर्कस पानी में फेंक दिए और इसके बाद वह वरुण देव के पास सुरक्षित पहुंच गए ।
द्रौपदी की मृत्यु कैसे हुई ?
आगे चलते चलते पांडवों ने महापर्वत हिमालय का दर्शन किया उसे भी लांघ कर जब वे आगे बढ़े तब उन्हें मेरु का दर्शन किया सब पांडव योग धर्मों में स्थित हो बड़ी शीघ्रता से चल रहे थे उनमें से द्रुपद कुमारी द्रोपदी का मन योग से विचलित हो गया। अतः वह लड़खड़ाकर पृथ्वी पर गिर पड़ी।
"राजकुमारी द्रोपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया फिर बताइए कौन सा कारण है जिससे वह नीचे गिर गई " भीमसेन ने महाराज युधिष्ठिर से पूछा ।
युधिष्ठिर कहते हैं "उसके मन में अर्जुन के प्रति विशेष पक्षपात था यह उसी का फल भोग रही है।"
ऐसा कह कर उसकी ओर देखे बिना ही बुद्धिमान धर्मात्मा युधिष्ठिर मन को एकाग्र करके आगे बढ़ गए।
सहदेव की मृत्यु
द्रौपदी के मृत्यु के थोड़ी देर बाद विद्वान सहदेव भी धरती पर गिर पड़े । उन्हें भी गिरा देख भीमसेन ने राजा से पूछा " जो सदा हम लोगों की सेवा किया करता था और जिस में अहंकार का नाम भी नहीं था यह सहदेव किस दोष के कारण धाराशाही हुआ है " युधिष्ठिर ने कहा
" यह राजकुमार सहदेव किसी को अपने जैसा विद्वान या बुद्धिमान नहीं समझता था अतः उसी दोष से इसका पतन हुआ है " सहदेव को भी छोड़ कर शेष भाइयों और एक कुत्ते के साथ युधिष्ठिर आगे बढ़ गए।
नकुल की मृत्यु
द्रोपदी और सहदेव को गिरे देख शूरवीर नकुल भी गिर पड़े मनोहर दिखाई देने वाले वीर नकुल के धराशाई होने पर भीमसेन ने पुनः राजा युधिष्ठिर से यह प्रश्न किया " संसार में जिसकी रूप की समानता करने वाला कोई नहीं था तो भी जिसने कभी अपने धर्म में त्रुटि नहीं आने दी तथा जो सदा हम लोगों की आज्ञा का पालन करता था वह हमारा प्रिय बंधु नकुल क्यों पृथ्वी पर गिरा है ? "
युधिष्ठिर ने नकुल के विषय में इस प्रकार उत्तर दिया " नकुल की दृष्टि सदा ऐसी रही है कि रूप में मेरे समान दूसरा कोई नहीं है इसके मन में यही बात बैठी रहती थी कि एक मात्र में ही सबसे अधिक रूपवान हूं इसीलिए नकुल नीचे गिरा है । "
अर्जुन की मृत्यु
द्रोपदी तथा नकुल और सहदेव तीनों गिर गए
यह देखकर शत्रु वीरों का शंहार करने वाले श्वेत वाहन पांडुपुत्र अर्जुन शोक से संतप्त हो स्वयं भी गिर पड़े । इंद्र के समान तेजस्वी वीर पुरुषसिंह अर्जुन जब पृथ्वी पर गिर कर प्राण त्याग करने लगे उस समय भीम ने राजा युधिष्ठिर से पूछा ।
" महात्मा अर्जुन कभी परिहास में भी झूठ बोले हो ऐसा मुझे याद नहीं आता फिर यह किस कर्म का फल है जिससे इन्हें पृथ्वी पर गिरना पड़ा ? "
युधिष्ठिर बोले " अर्जुन को अपनी शूरता का अभिमान था उन्होंने कहा था कि मैं एक ही दिन में शत्रुओं को भस्म कर डालूंगा किंतु ऐसा किया नहीं जा सकता था । क्योंकि उन्होंने दिव्यास्त्र का उपयोग नहीं करना चाहा । अपना कल्याण चाहने वाले पुरुष को ऐसा नहीं करना चाहिए । "
भीमसेन की मृत्यु
अर्जुन के मृत्यु के थोड़े आगे चलकर इतने में ही भीमसेन भी गिर पड़े गिरने के साथ ही भीमसेन ने धर्मराज युधिष्ठिर को पुकार कर पूछा
" जरा मेरी और तो देखीये मैं आपका प्रिय भीमसेन यहां गिर पड़ा हूं यदि जानते हो तो बताइए मेरे इस पतन का क्या कारण है ? "
युधिष्ठिर ने कहा " भीमसेन ! तुम बहुत खाते थे और दूसरों को कुछ भी ना समझ कर अपने बल की डिंग हाका करते थे इसी से तुम्हें भी धराशाई होना पड़ा है "
यह कह कर युधिष्ठिर उनकी ओर देखे बिना ही आगे चल दिए
युधिष्ठिर को स्वर्ग प्राप्ति
द्रौपदी और 4 भाई के मृत्यु के बाद युधिष्ठिर अकेले चलने लगे एक कुत्ता भी बराबर उनका अनुसरण करता रहा । तदनंतर आकाश और पृथ्वी को सब ओर से ध्वनित करते हुए देवराज इंद्र रथ के साथ युधिष्ठिर के पास आ पहुंचे और उनसे बोले " तुम इस रथ पर सवार हो जाओ "
युधिष्ठिर बोले " मेरे भाई मार्ग में गिर पड़े हैं वह भी मेरे साथ चले इसकी व्यवस्था कीजिए क्योंकि मैं भाइयों के बिना स्वर्ग नहीं जाना चाहता
राजकुमारी द्रोपदी भी हम लोगों के साथ चले इसकी अनुमति दीजिए "
इंद्रदेव ने कहा " तुम्हारे सभी भाई तुमसे पहले ही स्वर्ग में पहुंच गए हैं उनके साथ द्रौपदी भी है वहां चलने पर वह सब तुम्हें मिलेंगे । वे सब मानव शरीर का परित्याग करके स्वर्ग में गए हैं किंतु तुम इसी शरीर से वहां चलोगे इसमें कोई संशय नहीं है "
युधिष्ठिर बोले " यह कुत्ता मेरा बड़ा भक्त हैइसने सदा ही मेरा साथ दिया है अच्छा यह भी मेरे साथ चले ऐसी आज्ञा दीजिए क्योंकि मेरी बुद्धि में निष्ठुरताका अभाव है "
इंद्र ने कहा " तुम्हें अमरता और स्वर्गीय सुख भी उपलब्ध हुए हैं अतः इस कुत्ते को छोड़ो और मेरे साथ चलो इसमें कोई कठोरता नहीं है "
युधिष्ठिर ने कहा " संसार में यह निश्चित बात है कि मरे हुए मनुष्यों के साथ ना तो किसी का मेल होता है ना विरोध । द्रोपदी तथा उनके भाइयों को जीवित करना मेरे बस की बात नहीं है अतः मर जाने पर मैंने उनका त्याग किया है जीवित अवस्था में नहीं । शरण में आए हुए को भय देना, स्त्री का वध करना, ब्राह्मण का धन लूटना और मित्रों के साथ द्रोह करना - यह चारों धर्म एक ओर और भक्तों का त्याग दूसरी और हो तो मेरी समझ में यह अकेला ही उन चारों के बराबर है । "
इतने में ही वह कुत्ता अपने असली रूप में आ गए
वह कुत्ता और कोई नहीं बल्कि धर्मराज यानी यमराज़ थे ।
यमराज ने कहा " पूर्व काल में एक बार मैंने तुम्हारी परीक्षा ली थी जबकि तुम्हारे सभी भाई पानी लेने के लिए उद्योग करते हुए मारे गए थे । उस समय तुम ने कुंती और माद्री दोनों माताओं में समानता की इच्छा रख कर अपने सगे भाई भीम और अर्जुन को छोड़ केवल नकुल को जीवित करना चाहा था। ' यह कुत्ता मेरा भक्त है ' ऐसा सोचकर तुमने देवराज इंद्र के भी रथ का परित्याग कर दिया है यही कारण है कि तुम्हें अपने इस शरीर
से अक्षय लोकोंकी प्राप्ति हुई है तुम परम उत्तम दिव्य गति को पा गए हो ।
ऐसे धर्मराज युधिष्ठिर को स्वर्ग प्राप्त हुआ ।
द्रौपदी के साथ साथ नकुल सहदेव भीमसेन और अर्जुन को भी स्वर्ग प्राप्त हुआ था । नकुल और सहदेव अश्विनीकुमार के पुत्र थे तो उनको अश्विनीकुमार के पास स्थान मिला । भीमसेन वायुपुत्र थे तो उन्हें मरूत के साथ स्थान मिला । और युधिष्ठिर धर्मराज के पुत्र होने के कारण यमराज में लीन होगए । अर्जुन जो विष्णु के अंश थे वे श्री कृष्ण के साथ वैकुंठ धाम में चले गए । इस बात का वर्णन महाभारत गीताप्रेस संस्करण में दिया गया है ।
तो दोस्तों आज के इस लेख मैं हमने पांडवों की स्वर्ग यात्रा के विषय की जानकारी प्राप्त की उम्मीद करते हैं की इस लेख से आपको काफी कुछ सीखने को मिल होगा। पांडव तथा द्रौपदी की मृत्यु कैसे हुई इस विषय से जुडी आपकी सभी शंकाये दूर हुई होगी। इस story of pandavas journey to heaven in hindi को अपने मित्रों के साथ जरूर शेयर करे। धन्यवाद..
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