[HINDI ESSAY] चंद्रशेखर आज़ाद: हिंदी निबंध | chandra shekhar azad nibandh in hindi
इस लेख में हमारे देश के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद पर हिंदी निबंध दिया गया है। इस निबंध को आप अपने स्कूल और कॉलेज मै इस्तेमाल कर सकते है। तो चलिए हिंदी निबंध को शुरू करते है...
चंद्रशेखर आज़ाद: हिंदी निबंध - chandra shekhar azad nibandh in hindi
चंद्रशेखर आजाद यह नाम सुनने के बाद आंखों के सामने मूछों को ताव देता एक इंसान खड़ा रहता है। चंद्रशेखर आजाद की उग्र देशभक्ति और साहस के कारण उस काल के सभी लोग प्रोत्साहित हुए थे उन्होंने अनेक लोगों को स्वतंत्रता युद्ध मै सहभाग लेने के लिए प्रेरणा दी थी। वे सशस्त्र क्रांति के समर्थक थे।
चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्य भारत के भाबरा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी और माता का नाम जगदानीदेवी था। चंद्रशेखर आजाद का जन्म नाम चंद्रशेखर तिवारी था। किंतु वे बचपन से ही खुद को अंग्रेजों से आजाद समझते थे और उनका लक्ष्य भी देश को अंग्रेजों के अत्याचारों से आजाद करना था। इसी कारण उन्होंने अपना सरनेम तिवारी से आजाद कर लिया।
उनकी मां की इच्छा पर वे बनारस विद्यालय में संस्कृत का अध्ययन करने गए। 14 साल की कम उम्र में उन्होंने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। इस आंदोलन में उन्हें पकड़कर 12 चाबुक के फटके दिए गए। इस सजा के कारण चंद्रशेखर आजाद के मन में इंग्रज सरकार के प्रति और भी गुस्सा भर गया। अहिंसा से उनका विश्वास उठ गया और वे सशस्त्र क्रांतिकारी बन गए। काशी मै श्री प्रणवेश मुखर्जी ने उन्हें क्रांति कि दीक्षा दी। इसके बाद सन 1921 से लेकर सन 1932 तक जो जो क्रांतिकारी आंदोलन हुए उनमें चंद्रशेखर आजाद सक्रिय भूमिका में थे। और हर बार वे अंग्रेजों को चकमा देकर भाग जाते थे।
काकोर कांड, सॉंडर्स की हत्या और भगत सिंह के साथ मिलकर ब्रिटिश असेंबली में बम फेंकने इत्यादि कार्य उन्होंने किए। अंग्रेज़ सरकार उन्हें पकड़ने के लिए पूरी कोशिश कर रही थी। भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी की सजा सुना दी थी। इनकी सजा रद्द करने के लिए चंद्रशेखर आजाद काफी कोशिशे कर रहे थे। इसी बीच उन्होंने महात्मा गांधी से भगत सिंह को अंग्रेजों की जेल से छोड़ने कि याचना करने वाला पत्र लिखा। किन्तु गांधी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
इसके बाद चंद्रशेखर आजाद अकेले ही कोशिशे कर रहे थे। उनकी प्रतिज्ञा थी कि वह जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगेंगे। 27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क मै पहुंचे। पुलिस अधीक्षक नॉट बाँबरने उन्हें देखते ही उन पर गोली चला दे। यह गोली आजाद की जांघ पर लगी। इसी वक़्त उन्होंने बाँबर पर गोली चला कर उसका हाथ खाली किया। छुपते हुए वे झाड़ियों में जा पहुंचे। इन झाड़ियों से वे चिल्लाने लगे की, "अरे सिपाही भाइयों तुम मुझ पर गोलियां क्यों चला रहे हो? मैं तुम्हारी आजादी के लिए ही लड़ रहा हूं ।" वन्दे मातरम वन्दे मातरम। इस तरह उन्होंने गोलियां चलारहे ब्रिटिश पुलिस से लड़ाई की। और जब उनके पिस्तौल में आखरी गोली बाकी थी तब उन्होंने उस गोली को खुद को मारके मृत्यु को स्वीकार किया।
नॉट बाँबरने कहा, "ऐसे महान और सच्चे निशानेबाज मैंने काफी कम देखे हैं।" इसके बाद आतंकी मारा गया ऐसा कह कर पुलिस ने उनका शरीर वहीं पर जला दिया। जब पंडित मालवीय और कमला नेहरू को यह बात पता चली तब वे वहां आए और उन्होंने अर्धजली चिता को बुझाकर हिंदू रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार किया।
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